रुकावटें नहीं होती राह में हमें भटकाने के लिए’ वह तो होती है हमारी हिम्मत और साहस को आजमाने के लिए”
यह पंक्तियां चरितार्थ करती हैं एक ऐसे व्यक्तित्व को जिसने लीक से हटकर एक ऐसी राह चुनी जिसमें भले ही कई मुश्किलें आई किंतु अपनी हिम्मत और लगन से उन्होंने रुकावटों को सीढ़ी और स्वस्थ समाज की कल्पना को साकार करने का बीड़ा उठाते हुए राष्ट्रीय पुरस्कार ‘पदम श्री ‘ प्राप्त करके समाज व युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनकर हमारे समक्ष है.
बात हो रही है श्री नेकराम शर्मा जी की, हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला तहसील करसोग गांव नांज के श्री नेक राम शर्मा जी को वर्ष 2022-2023 के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रीय पुरस्कार पदम श्री के लिए चुना गया है.
2022 23 पदम श्री विजेता नेकराम शर्मा जी का जीवन परिचय एक झलक में:
पूरा नाम | नेकराम शर्मा |
जन्मतिथि | 1 जुलाई 1964 |
जन्म स्थान | इनका जन्म हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के तहसील करसोग के नांज क्षेत्र में हुआ। |
वर्तमान में आयु | 59 वर्ष |
पिता का नाम | श्री जालम राम |
माता का नाम | श्रीमती कमला देवी |
माता पिता का व्यवसाय | कृषि व पशुपालन |
शैक्षणिक योग्यता | दसवीं पास |
पदम श्री अवार्ड किस क्षेत्र में योगदान के लिए दिया जा रहा है। | पदम श्री अवार्ड नौ अनाज की खेती को पुनर्जीवित करने के लिए और प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए दिया जा रहा है। |
पत्नी का नाम | श्रीमती रामकली |
पत्नी का व्यवसाय | गृहिणी |
बच्चे | एक बेटा और एक बेटी |
बेटे का पेशा | म्यूजिक टीचर |
बेटी | गृहिणी |
कब से प्राकृतिक कृषि व 9 अनाजों का उत्पादन कर रहे हैं। | पिछले 18 वर्षों से |
जाति | ब्राह्मण |
सामाजिक योगदान | वन लगाओ वन बचाओ आंदोलन में योगदान. 9 परंपरागत अनाजोंं का निशुल्क बंंटवारा। |
आय के साधन | पारंपरिक कृषि वह प्राकृतिक कृषि मख्य स्त्रोत। |
पारंपरिक नो अनाज कौन कौन से हैं? | ज्वार, बाजरा, भरेसा, शौंक, तिल, बाथु, कोदा, काऊंणी. और चीणा |
युवाओं को संदेश |
Table of Contents
नेक शर्मा जी को पदम श्री पुरस्कार किस क्षेत्र में योगदान देने के लिए दिया जा रहा है?
नेकराम शर्मा जी को पदम श्री अवार्ड सदियों से चली आ रही नौ अनाज की पारंपरिक फसल को पुनर्जीवित करने के लिए और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए यह पुरस्कार दिया जा रहा है।
नौ अनाज एक प्राकृतिक अंतर फसल विधि है जिसमें 9 खाद्यान्न बिना किसी रसायनिक उपयोग के जमीन के एक टुकड़े पर उगाए जाते हैं। इससे पानी के उपयोग में 50 फ़ीसदी की कटौती और भूमि की उर्वरता बढ़ती है।
नेकराम शर्मा जी का जीवन परिचय:
नेकराम शर्मा जी मूलतः नांज के स्थाई निवासी है। इनका जन्म 1 जुलाई, 1964 को हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय नांज से हुई है। बचपन से ही नेक राम शर्मा जी पर्यावरण प्रेमी और प्रकृति पूजक रहे हैं।
श्रीमती कमला देवी और श्री जालम राम दंपत्ति के घर में जन्मे नेकराम शर्मा जी ने बड़े संघर्ष का समय देखा और जीया है। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह अपनी पढ़ाई को जारी नहीं रख पाए।
सरकारी नौकरी के लिए भी इन्होंने प्रयास किए और सफल भी हो गए लेकिन अपनी आंतरिक इच्छा और रुचि को पूरा करने के लिए इन्होंने फिर प्रयास किया। इनके संघर्ष के साथी रहीं इनकी धर्मपत्नी श्रीमती रामकली, अपने दो बच्चों की परवरिश करते हुए इनकी पत्नी ने आर्थिक स्थिति सुधारने में भी योगदान दिया है। 1983 – 84 में उन्होंने साग सब्जी लगाना शुरू किया, साथ ही साथ करसोग ब्लॉक ज्ञान विज्ञान समिति के अध्यक्ष पद पर 5 वर्ष तक कार्यरत रहें।
1992 में इनकी नियुक्ति साक्षरता अभियान पंचायत समन्वयक पद पर हुई। इसके साथ-साथ इन्होंने अंगोरा (जर्मन अंगोरा रैबिट )की भी ट्रेनिंग ली और अपना फार्म शुरू किया। साक्षरता अभियान में सक्रिय भागीदारी होने के कारण वे अपना समय फार्म को नहीं दे पाए जिसके कारण उन्हें भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ी। इस समय में इनकी धर्मपत्नी ने बड़ी सूझबूझ से इस बुरी स्थिति से निपटने में इनकी मदद की।
साक्षरता अभियान में सक्रिय भागीदारी के चलते उन्होंने अपने गांव नांज के आसपास 15 से 20 स्कूल बनवाए।
इन्होंने जंगल बचाओ अभियान में भी अहम भूमिका निभाई जिसके तहत उन्होंने 300 हेक्टेयर भूमि पर जंगल लगाने का काम किया। इन्होंने नर्सरी तैयार की। यहां आपको बताते चलें कि नेकराम शर्मा जी की पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और लगाव के चलते उन्होंने एक आंदोलन भी चलाया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को इकट्ठा करके जागरूक किया और वे इस कार्य में सफल भी हुए।
इन्होंने सन 1995 से सन 2000 तक करसोग में जंगल बचाने के लिए एक मुहिम शुरू की और इसके बाद फारेस्ट विभाग ने भी इनका योगदान दिया, महिला मंडलों से भी इस मुहिम में इन्हें सहयोग प्राप्त हुआ।
यह नेकराम शर्मा जी की पर्यावरण के प्रति जागरूकता व लगाव का ही परिणाम था कि इनके साथ लोग जुड़ते चले गए और यह उनका कुशल नेतृत्व करते रहे। इन्होंने इस क्षेत्र में अपनी रुचि को कम नहीं होने दिया और इसमें निरंतर काम करते रहे और बेहतर जानने की इच्छा ने इन्हें कई विश्वविद्यालय में पहुंचाया। जिसमें कृषि विश्वविद्यालय बेंगलुरु, हिमाचल प्रदेश की नौणी यूनिवर्सिटी,(बागवानी विश्वविद्यालय) पालमपुर यूनिवर्सिटी (कृषि विश्वविद्यालय) शामिल है। इन विश्वविद्यालयों में इन्होंने अपनी जिज्ञासा समय-समय पर शांत की।
नेकराम शर्मा जी का संघर्ष व उत्तरदायित्व भरा जीवन आसान नहीं था। समाज के प्रति दायित्व निभाते निभाते इन्होंने अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से कभी मुख नहीं मोड़ा। इन्होंने सब्जियां उगाना ऊन की शालें बनाना, स्वेटर बनाना शुरू किया। जिसमें इनकी धर्मपत्नी भी कंधे से कंधा मिलाकर परिवार चलाने में हरदम साथ रहीं।
आय के उचित स्त्रोत न होने के बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी, बड़ी कुशलता व सूझबूझ के साथ वे विपरीत परिस्थितियों से निकलने में सफल हुए। इन्होंने अपने परिवार और बच्चे की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया।
कृषि क्षेत्र में विशेष रुचि और लगाव के रहते हुए ‘गुणवत्ता व आत्मनिर्भरता’ का जुनून साथ लिए हुए ये परंपरागत कृषि की ओर मुड़े। उन्होंने पाया कि परंपरागत अनाज में 50 साल तक कीड़ा नहीं लगता।
r रसायनिक खादों और उर्वरकों का उपयोग नहीं होता है. परंपरागत कृषि के लिए उन्होंने IIT (NCERT) दिल्ली में भी ट्रेनिंग ली।
आज जो भारत सरकार मैं इन्हें पदम श्री के लिए चुना है यह उनकी इस क्षेत्र में लगन और मेहनत का ही परिणाम है. इन्होंने सदियों से चली आ रही नौ अनाज की पारंपरिक फसल को पुनर्जीवित किया है.
नौ अनाज एक प्राकृतिक अंतर फसल भी दी है जिसमें 9 खाद्यान किसी रासायनिक उपयोग के बीना जमीन के एक ही टुकड़े पर उगाए जाते हैं।
इससे पानी के उपयोग में 50 फ़ीसदी की कटौती और भूमि की उर्वरता बढ़ती है। इन्होंने अन्य किसानों को भी इस प्रणाली को अपनाने के लिए प्रेरित करके उन्हें ट्रेनिंग दी। साथ ही साथ स्थानीय स्वदेशी बीजों का उत्पादन कर 6 राज्य में 10,000 से अधिक किसानों को बिना किसी शुल्क के वितरित कर रहे हैं। ना़ज क्षेत्र के हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गांव को अपनी प्रतिभा से पहचान देने वाले साधारण परिवार में जन्मे 59 वर्षीय किसान नेकराम शर्मा जी ने पारंपरिक अनाज के संरक्षण और संवर्धन के लिए असाधारण कार्य किया है।
यह उनकी मेहनत वह लगन का ही परिणाम है कि आज करसोग क्षेत्र में व पूरे हिमाचल प्रदेश में प्रेरणा बने व राष्ट्रीय स्तर पर पहचान पाने वाले इस किसान की वजह से आधुनिकता के दौर में भी पारंपरिक खेती को तवज्जो दी जा रही है।
पिछले 18 वर्षों से दसवीं कक्षा तक पढ़े नेकराम शर्मा जी ने न केवल पारंपरिक अनाज के बीज को संरक्षित किया बल्कि इसका दायरा भी बढ़ाया है। 1000 किसानों को जोड़कर लुप्त हो रहे मोटे अनाज को लेकर जागरूकता की मशाल भी जगाई।
नेकराम शर्मा जी बताते हैं कि परंपरागत कृषि में कई अनाजों को एक खेत में एक साथ बीज सकते हैं इनका मानना है कि परंपरागत अनाज केवल हमारी भूख ही नहीं मिटाते बल्कि यह हमें निरोग भी रखते हैं। इसके लिए इन्होंने बीड़ा भी उठाया और लोगों को दो मुट्ठी परंपरागत अनाज के बीज इस शर्त पर दिए कि उन्हें वे अपने खेतों में भी बीजेंगे।
परंपरागत बीज हमारी संस्कृति का भी हिस्सा है, शिवरात्रि में प्रयोग होने वाले जौ जो महादेव को बनाने में प्रयोग में लाया जाते है, इसके अतिरिक्त तिल का तेल जिसे पूजा में प्रयोग किया जाता है। ये नौणी विश्वविद्यालय व पालमपुर विश्वविद्यालय के संपर्क में हमेशा रहते हैं और अपनी जिज्ञासा को शांत करते हैं।
नेकराम शर्मा जी ने अपना आम का बगीचा भी तैयार किया है जो रसायन मुक्त है जिसमें किसी भी प्रकार की रसायनिक स्प्रे का इस्तेमाल नहीं हुआ है। कीट नियंत्रण के लिए यह ‘दशपरणी बनाते हैं। यह दशपरणी 10 पत्तों से तैयार की गई एक स्प्रे है जो कीटनाशकों से आम की रक्षा करती है। यह सपरे कीटनाशक मुक्त है व स्वयं तैयार की गई है।
उन्होंने कहा कि परंपरागत अनाजों में आने वाला काऊंणी व चीणा कम मात्रा में खाया जाता है। 100 ग्राम एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त होता है लेकिन इनकी गुणवत्ता बहुत अधिक है। लोगों द्वारा बर्बाद की गई ऊन को इकट्ठा करके वे उसकी कताई बुनाई करते हैं, जिससे हम कपड़ा तैयार करते हैं।
नेकराम शर्मा जी का प्रदेश व देश के बेरोजगार युवाओं को संदेश:
युवाओं को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि हम रोजगार की तलाश में शहर की तरफ न भागें। अपने संसाधनों का प्रयोग करके आत्मनिर्भर बनें। आज का युवा मनपसंद रोजगार न मिलने पर निराश होकर तनावग्रस्त हो जाता है। वह कई बुरे व्यसनों का सहारा लेकर अपने जीवन को खतरे में डाल देता है।
हमारे घर गांव में खेत खाली पड़े हैं , बंजर पड़े हैं उनकी देखभाल करें ,उनकी कदर करें। आज पशु सड़कों में घूम रहे हैं। अपनी स्वार्थपरकता ने उन्हें लावारिस बना दिया है। नेकराम शर्मा जी ने कहा कि प्रकृतिक कृषि व पहाड़ी गाय पालकर हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं व स्वस्थ समाज का निर्माण करने के भागीदार भी बन सकते हैं।
आज गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है परिणाम स्वरूप समाज में कई बीमारियां फैल रही हैं। इन्होंने शोंक, भरेसा, ज्वार, बाजरा जैसे परंपरागत अनाज में शोध का कार्य किया। परंपरागत अनाज शुगर जैसी कई बीमारियों से निजात पाने में कारगर साबित हो रहे हैं, बस उन्हें हमें अपनी थाली में हिस्सा बनाने की जरूरत है।
स्वस्थ रहने के लिए अपने जीवन में सही आहार का चयन करना होगा। जान है तो जहान है। एक पहाड़ी गाय का दूध भी जिससे स्वस्थ भी रह जा सकता है और आत्मनिर्भर भी बन सकते हैं।
दूध बेचकर भी लोग 40 – 50 हजार की आय अर्जित कर एक लाख तक पहुंच गए हैं। पहाड़ी गाय का घी आज ₹2500 रुपए किलो के हिसाब से मिल रहा है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम है। इस तरह हमारा समाज स्वस्थ रहकर आत्मनिर्भर बन सकता है।
निष्कर्ष:
श्री नेकराम शर्मा जी ने इस मुहिम के लिए उन सब लोगों का भी धन्यवाद किया जो उनके साथ जुड़े हैं जिन्होंने इस मुहिम को सफल बनाने में उनका सहयोग किया है।
सन 2018 से हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी परंपरागत कृषि व प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने की मुहिम चलाई है और यह मुहिम राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गई है। यह नेकराम शर्मा जी की मेहनत लगन व सच्चे इरादों का ही परिणाम है कि उन्होंने पदम श्री जैसे राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा रहा है।
आओ हम सभी इस मुहिम को बढ़ाने व अपने वह समाज को स्वस्थ रखने की कल्पना करते हुए इन परंपरागत अनाजों को अपनी थाली में जरूर शामिल करें व प्राकृतिक व परंपरागत खेती को बढ़ावा देने में सहयोग दें।
Q.1 नेकराम शर्मा जी का जन्म कब हुआ?
Ans. नेकराम शर्मा जी का जन्म 1 जुलाई 1964 को हुआ है
Q 2. नेकराम शर्मा जी हिमाचल प्रदेश के किस क्षेत्र से संबंध रखते हैं?
Ans. नेकराम शर्मा जी हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के तहसील करसोग के नांज क्षेत्र से संबंध रखते हैं.
Ans.नेकराम शर्मा जी को किस क्षेत्र में योगदान देने के लिए पदम श्री के लिए चुना गया है?
Ans. विक्रम शर्मा जी को नौअनाज की खेती को पुनर्जीवित करने और प्रकृति कृषि को बढ़ावा देने के लिए पदम श्री से नवाजा गया है.
Q.4 नेकराम शर्मा जी कितने वर्षों से 9 अनाज की खेती और प्राकृतिक कृषि में कार्यरत हैं?
Ans. नेकराम शर्मा जी पिछले 18 वर्षों से इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं.