लोहड़ी पर निबंध (Lohdi Pr Nibndh Hindi me)

प्रतिवर्ष जनवरी मास में नए साल में प्रवेश हमारा नई ऊर्जा नए, उत्साह व नए संकल्प के साथ होता है. नए आरंभ को करते हुए हम 31 दिसंबर को बीते वर्ष की विदाई देने का प्रचलन वर्ष दर वर्ष नया रूप ले रहा है1 जनवरी से हम नई साल का आरंभ करते हुए योजनाएं बनाते हैं. इस नए आरंभ के साथ हम त्योहारों को मनाने की शुरुआत भी करते हैं।

  • जनवरी महीने की शुरुआत हमारे नए साल से होती है इसी तरह से 13 व 14 जनवरी भी संभवत प्रत्येक वर्ष उत्सव के रूप में ही मनाए जाते – लोहड़ी व मकर सक्रांति.

लोहड़ी पर निबंध (Lohdi Pr Nibndh Hindi me)

  • लोहड़ी का त्यौहार पूरे उत्तर भारत में बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है. पंजाब व हरियाणा में इसे फसल काटने व नई फसल के उगाने के रूप में लिया जाता है.

लोहड़ी के शुरुआत के पीछे एक कथा भी प्रचलित है जो बच्चों द्वारा लोहड़ी का त्यौहार आने के कई दिन पहले गीत के रूप में घर-घर जाकर सुनाई जाती है और इसके बदले में प्रसन्न होकर लोग बच्चों को उपहार मिठाईयां मूंगफली रेवड़ी भी बांटते हैं.

  • कथा की शुरुआत सुंदरी नामक एक लड़की तथा दुल्ला भट्टी नामक एक योद्धा से होती है. इस प्रचलित ऐतिहासिक कथा के अनुसार बंजीबार क्षेत्र में एक ब्राह्मण रहता था। जिसकी सुंदरी नामक एक कन्या थी. जो अपने नाम के अनुरूप ही बहुत सुंदर थी. वह इतनी रूपवान थी कि उसके रूप, यौवन व सौंदर्य की चर्चा गली-गली में होने लगी थी. धीरे-धीरे उसके सुंदरता के चर्चे उड़ते उड़ते गंजाबीर के राजा तक पहुंचे.

  • राजा उसकी सुंदरता के चर्चे सुनकर सुंदरी पर मोहित हो गया. और उस सुंदरी को अपने हरम की शोभा बनाने का निश्चय किया.गंजावीर के राजा ने सुंदरी के पिता को संदेश भेजा कि वह अपनी बेटी को उसके हरम में भेज दें इसके बदले में उसे धन दौलत से लाभ दिया जाएगा। उसने उस ब्राह्मण को अपनी बेटी को उसके हरम में भेजने के लिए अनेक तरह के प्रलोभन दिए।

  • राजा का संदेश मिलने पर बेचारा ब्राह्मण घबरा गया। वह अपनी लाडली बेटी को उसके हर मे नहीं भेजना चाहता था। जब उसे कुछ नहीं सूझ रहा था तो उसने जंगल में रहने वाले राजपूत योद्धा दुल्ला भट्टी का ख्याल आया जो एक कुख्यात डाकू बन चुका था।लेकिन गरीबों और शोषित ओं की मदद करने के कारण लोगों के दिलों में उसके प्रति अपार श्रद्धा थी. ब्राह्मण उसी रात दुल्ला भट्टी के पास पहुंचा उसे विस्तार से सारी बात सुनाई. दुल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की बात सुन उसे सांत्वना दी और रात को खुद एक सुयोग्य ब्राह्मण लड़के की खोज में निकल पड़ा.

  • दुल्ला भट्टी ने उसी रात एक योग्य ब्राह्मण लड़के को तलाश कर सुंदरी को अपनी ही बेटी मानकर अग्नि को साक्षी मानते हुए उसका कन्यादान अपने हाथों से किया और ब्राह्मण युवक के साथ सुंदरी का रात में ही विवाह कर दिया.उस समय दुल्ला भट्टी के पास बेटी सुंदरी को देने के लिए कुछ भी नहीं था. पता उसने तिल शक्कर देकर ही ब्राह्मण युवक के हाथ में सुंदरी का हाथ थमा कर सुंदरी को उसके ससुराल विदा कर दिया.

  • जंजीबार के राजा को जब इस बात की सूचना मिली तो वह आग बबूला हो उठा. उसने उसी समय अपनी सेना को जंजीबार इलाके पर हमला करने तथा दुल्ला भट्टी का खात्मा करने का आदेश दिया.राजा का आदेश मिलते ही सेना दुल्ला भट्टी के ठिकाने की ओर बड़ी लेकिन दुल्ला भट्टी और उसके साथियों ने अपनी पूरी ताकत लगाकर राजा की सेना को बुरी तरह से धूल चटा दी।

  • दुल्ला भट्टी के हाथों शाही सेना की करारी शिकस्त होने की खुशी में गंजी बार मे लोगों ने अलाव जलाए और दुल्ला भट्टी की प्रशंसा में गीत गाकर भांगड़ा डाला।कहा जाता है कि तभी से लोहड़ी के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों में सुंदरी और जूली बूटी को विशेष तौर पर याद किया जाने लगा।

लोहरी के मौके पर गाए जाने वाला गीत:

  • सुंदर मुंद्रीय हो।
  • तेरा कौन विचारा हो।
  • दुल्ला भट्टी वाला हो।
  • दुल्ले धी ब्याही हो।
  • सेर शक्कर पाई हो।
  • कुड़ी दे मामा आए हो।
  • मम्मी चूरी कुट्टी हो।
  • जमीदार लुटती हो।
  • कुड़ी लाल दुपट्टा हो।
  • दुल्ले धी ब्याही हो।
  • दुल्ला भट्टी वाला हो।
  • दुल्ला भट्टी वाला हो

लोहड़ी के मौके पर यह गीत आज भी जा बात अपन में घुसता है तो दुल्ला भट्टी के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा का अभाव स्वता ही हो जाता है।

लोहड़ी का त्यौहार उत्तर भारत में मकर संक्रांति से 1 दिन पहले मनाया जाता है। इसके संबंध में एक और प्रचलित कहानी भी है कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के दहन की याद में लोहरी पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है।

  • इसलिए इसे लोही भी कहा जाता है। थोड़ी का अर्थ आमतर पर ल (लकड़ी) + ओह (गुहा यानी गोबर के सूखे उपले)+डी (रेवड़ी)।

  • लोरी के 10 से15 दिन पहले से ही लोहड़ी के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। लोहड़ी के 7 दिन पहले से ही लोहड़ी के गीत गा गा कर लकड़ी और उपले इकट्ठा करते हैं।

  • लोहड़ी आज के समय में बच्चे सुंदर मुंद्रीय गाकर घरों बाजार ओं में गांव जाकर सभी लोगों ने प्रसन्न होकर मूंगफली रेवड़ी , पैसे बांटते हैं।

हर साल लोग 13 जनवरी की शाम को सामूहिक रूप में किसी एक जगह में इकट्ठा होकर लकड़ी का अलाव जलाकर इसकी पूजा करते हैं। लोग खुशी-खुशी नाचते हुए झूमते हुए त्योहार को मनाते हैं। शहरों और गांव में भी इसका प्रचलन है।

  • गांव में लोग अपने चूल्हे की पूजा करते हैं हवन सामग्री पाजा की लकड़ी की तिल गुड़ से चूल्हा सभी सदस्यों के द्वारा पूजा जाता है भले बाबू पकवान तिल के लड्डू बनाए जाते हैं। आस-पड़ोस रिश्तेदारों को पकवान मूंगफली गुड़ रेवड़ी बांधकर बड़ों का आशीर्वाद लेकर यह त्यौहार मनाया जाता है।

  • लोहड़ी त्योहार का बच्चों को विशेष रूप से उत्साह रहता है। आसपास के मोहल्ले में जाकर लोहरी मांगते हैं। यह त्योहार आपस में मिलजुल को बढ़ाता है।

लोहड़ी प्रेम मेलजोल व एकता का प्रतीक है। सभी बच्चे मिल जुलकर बिना किसी भेदभाव के लोरी बड़े हक से मांगने अपने गांव गली मोहल्ले में जाते हैं। इससे आपसी भाईचारा मेल मिलाप पड़ता है।

  • बच्चों की छुपी हुई प्रतिभा लोहड़ी के बहाने सामने आती है। उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। उनकी झिझक दूर होकर अपनापन बढ़ता है। लोहड़ी सौहार्द प्रेम व एकता का प्रतीक है हम सभी को यह त्यौहार आनंद व उल्लास से मनाना चाहिए नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब यह सब रीति रिवाज तीज त्योहार धीरे-धीरे हमारे जीवन से लुप्त हो जाएंगे।

  • लोहरी वह मकर सक्रांति आपसी मेलजोल वह भाईचारा बढ़ाने वाले प्रतीक है इन त्योहारों के माध्यम से लोगों के बीच का प्रेम स्नेह बढ़ता है।

  • हमारे 30 तोहार आशा सरसता व प्रेम का संदेश देते हैं। आज के समय में हमारे पुराने त्योहार और रिति रिवाज आधुनिकता की चकाचौंध की बलि चढ़ते हुए भी देखे जा रहे हैं। लोग एकाकी जीवन जीना पसंद करने लगे हैं परिणाम स्वरूप व तनाव व भयंकर बीमारियों की चपेट में आने लगे हैं।

  • निराशा ने जिंदगी की भाग दौड़ मैं लोगों को घेर लिया है। वह अपने परिवार और अपने तक ही सीमित रहने लगा है लोगों से मिलना जोड़ना उसे पसंद नहीं आ रहा है 30 तोहार आज के आधुनिक लोगों के लिए फहड़पन और पिछड़ेपन का नाम रह गए हैं।

  • जिसके भयंकर परिणाम स्वरुप वह स्वार्थी बन गया है दूसरों के प्रति दया भाव समाप्त हो गया है ऐसे लोगों से मिलकर बना हुआ समाज घातक है। ऐसे समाज से उन्नत व विकसित राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती है।

  • तो हमें रीति-रिवाजों त्योहारों का सम्मान देना चाहिए। अपने व्यस्ततम जीवन शैली में समय प्रबंधन करके उन्हें हर्षोल्लास से मनाना चाहिए तभी हम अपने आने वाली पीढ़ी को हम संस्कार के रूप में आगे बढ़ा सकते हैं।

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