योगी आदित्यनाथ: जीवनी,आयु, शिक्षा, परिवार, राजनीतिक जीवन, जाति, संपत्ति, विवादित भाषण

इस पोस्ट के माध्यम से हम अपको योगी आदित्यनाथ: जीवनी,आयु, शिक्षा, परिवार, राजनीतिक जीवन, जाति, संपत्ति, विवादित भाषण और उनके अजय से योगी बनने की कहानी से अवगत करेंगे।

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योगी आदित्यनाथ (अजय) के प्रारंभिक जीवन का परिचय:

1972 को योगी आदित्यनाथ का जन्म उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड में ) के उत्तरकाशी जिले के मशाल गांव में हुआ था। परिवार में उनका जन्म पांचवे स्थान पर हुआ है। उनके पिता का नाम आनंद सिंह बिष्ट है। यह एक दिलचस्प तथ्य है कि चुनावी फॉर्म में योगी आदित्यनाथ पिता के नाम के कॉलम में महंत अवैद्यनाथ का नाम लिखा जाता हैं, क्योंकि सन्यास के बाद गुरु को ही पिता माना जाता है।

  • योगी आदित्यनाथ का बचपन का नाम अजय है। संन्यास लेने के बाद उनका नाम योगी आदित्यनाथ पड़ा। अजय का पालन पोषण उनके पैतृक गांव पंचूर में हुआ है जो पौड़ी गढ़वाल में है। पंचूर एक छोटा सा गांव है, जहां 15 से 20 घर हैं और यह उत्तराखंड के यम्केश्वर ब्लॉक की थांगर ग्राम पंचायत में पड़ता है।

  • अजय बचपन में अपने बहनों के बहुत करीब थे और उनकी बहनों ने ही उन्हें अक्षर ज्ञान और भाषा की शिक्षा दी है।

  • अजय बचपन से ही एक सीधे साधे और नेक दिल बालक थे। बचपन से ही अजय को गाँयों के साथ बहुत अधिक लगाव था। विष्ट परिवार के पास घर में गाय थी और स्कूल के बाद गाय चराने ले जाना अजय का दैनिक कार्य का हिस्सा था। अजय को बचपन से पशुओं से बहुत लगाव था।

अजय विनम्र आज्ञाकारी थे और उन्हें बचपन से ही अखबार पढ़ने का बहुत अधिक शौक था। अजय के पिता बिष्ट को नौकरी की वजह से घर से बाहर रहना पड़ता था लेकिन वह इस बात का ख्याल रखते थे कि उनके बच्चों पर उनकी नजर रहे और यह देखने के लिए अचानक घर आते थे कि उनके बच्चे अनुशासित हैं या नहीं और अपनी पढ़ाई पूरा ध्यान दे रहे हैं या नहीं। अजय मैं बचपन से ही निर्णय लेने की क्षमता थी।

  • इसी कठोर अनुशासन के कारण ही आज पंचूर का अजय उत्तर प्रदेश का 21 वां मुख्यमंत्री बन गया है। अजय की माता घर के दैनिक कार्य को निपटाने के लिए सुबह 4:00 बजे उठ जाती और घर के कार्य को निपटी। यही आदत उनके बच्चों में भी विकसित हुई है।

योगी आदित्यनाथ (अजय) के शैक्षणिक जीवन का परिचय:

अजय बिष्ट ने अपनी प्राथमिक स्कूली शिक्षा थाँगड़ सरकारी प्राथमिक स्कूल से प्राप्त की। पंचूर गांव यमकेश्वर ब्लॉक के थांगर पंचायत का हिस्सा है। अजय एक शांत स्वभाव के बालक थे लेकिन हमेशा अपने आसपास के लोगों की मदद करते थे।

  • क्योंकि थानगढ़ का सरकारी स्कूल आठवीं कक्षा तक ही था, इसलिए अजय को 9 वीं कक्षा के लिए चमकोट और दसवीं कक्षा के लिए टिहरी के गाजा में दूसरे सरकारी स्कूल में जाना पड़ा। यह भी पड़ें : दीप राज MLA करसोग का जीवन परिचय।

  • अपनी 11वीं और 12वीं की पढ़ाई के लिए अजय ऋषिकेश चले आए, जो उत्तराखंड का शहर है, जहां उन्होंने श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज में दाखिला लिया और पीसीएस (फिजिक्स केमिस्ट्री और मैथ्स) के साथ हिंदी और अंग्रेजी को चुना। ऋषिकेश में अजय अपने बड़े भाई मनेंद्र के साथ रहते थे, जो उस समय वही किसी कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रहे थे।

  • अजय बिष्ट स्कूल टाइम से ही स्कूल में आयोजित होने वाले वाद-विवाद और अन्य प्रतियोगी कार्यक्रम पर नियमित रूप से हिस्सा लिया करते थे।

कोटद्वार में अजय के कॉलेज के दिन:

1989 में अजय अपने ग्रेजुएशन के लिए कोटद्वार के पीजी गारमेंट कॉलेज में आए। उन्होंने एक बार फिर पीसीएस (Physics, Chemistry, Math’s) ही चुना, क्योंकि उन्होंने इसी इन्हीं विषय मे इंटर की पढ़ाई पूरी की थी

  • अजय के ग्रुप में राज भूषण सिंह रावत, अनिल बिष्ट, संदीप बिष्ट ,अनूप कंडारी, हर्ष पाल राणा ,अरविंद बंसल, नीरज अग्रवाल, बबीता राणा, सरस्वती रावत और आरती नाम के कुछ लड़के और कुछ लड़कियों का ग्रुप था, जिनके साथ कॉलेज के दिनों में अजय ने अपना समय बिताया था।

  • राज भूषण सिंह रावत आज भी योगी आदित्यनाथ के साथ काम करते हैं और योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद वे लखनऊ चले आए हैं। राजा बाबा के नाम से मशहूर राज भूषण सिंह रावत नियमित रूप से कॉलेज के पुनर्मिलन समारोह का आयोजन करते हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से संपर्क साधने के लिए सभी सहपाठियों के लिए वही संपर्क सूत्र हैं।
  • अजय समेत पूरा ग्रुप हर दिन कोटद्वार में झंडा चौक से लेकर सिद्धबली हनुमान मंदिर तक 3 किलोमीटर की दौड़ लगाता था। उस समय यह ग्रुप बैडमिंटन खेला करता था और अजय योग करने के साथ नियमित रूप से व्यायाम भी किया करते थे। पूरा ग्रुप अक्सर कालागढ़ तारकेश्वर और मसूरी जैसी जगह में पिकनिक पर जाया करता था। यह भी पढ़ें : महेंद्र सिंह धोनी का जीवन परिचय, आयु , उम्र , पत्नी , मत -पिता , संपति, विवाद

कॉलेज के दिनों की एक घटना जो महिलाओं के प्रति उनके सम्मान को दिखाती है:

कॉलेज में पहले ही साल में अजय बिष्ट की एक साथी स्वरस्वती रावत कॉलेज छात्र संघ के चुनावों में संयुक्त सचिव पद के लिए खड़ी हुई और अजय समेत उनका ग्रुप उसके लिए चुनाव प्रचार करने कर लिए दुगड़ा नामक नाम की एक जगह पर गया। उन्होंने जब अपना प्रचार समाप्त किया, तब तक शाम के 6:00 बज चुके थे और कोई भी बस उनके लिए नहीं रुक रही थी क्योंकि कॉलेज के छात्र टिकट के पैसे के बिना ही सफर करने के लिए बदनाम थे। इसलिए कोई भी बस कॉलेज के स्टूडेंट्स को देखकर कर नहीं रुक रही थी।

  • क्योंकि उस समय कोटद्वार तक आने के लिए बस ही एक माध्यम था और अंधेरा होने लगा था। क्योंकि उन दिनों मोबाइल फोन भी नहीं हुआ करते थे, इसलिए छात्रों के लिए अपने-अपने परिवारों को जानकारी देना भी संभव नहीं था।

  • उनके ग्रुप की एक लड़की बबीता बहुत परेशान हो गई थी और उसकी आंखों से आंसू आने ही वाले थे तभी उसने देखा कि अचानक अजय उठा और बस के आगे खड़े हो गया और अजय ने बस को खड़ा होने के लिए मजबूर कर दिया। अजय से मात्र कुछ इंच की दूरी पर ही बस रुकी।

  • हर कोई अजय की सुरक्षा को लेकर घबराया हुआ था लेकिन उसने कंडक्टर के विरोध की जरा भी परवाह नहीं की और सभी लड़कियों से कहा कि जल्दी से बस में सवार हो जाए। लड़कियों ने कंडक्टर को भरोसा दिलाया कि वह बस की टिकट के पैसे देंगे और इस तरह अजय के पूरे ग्रुप को सुरक्षित कोटद्वार ले आया।

  • यह कोई मामूली घटना नहीं थी यह दिखाती थी कि उसमें महिलाओं को लेकर कितना सम्मान और उनकी सुरक्षा को लेकर कितनी चिंता है। आज जब पूरे उत्तर प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए एंटी रोमियो स्क्वाड तैनात किए गए हैं तब योगी प्रशासन के इस कदम में इसकी झलक दिखती है।

अजय की दिलचस्पी राजनीति में शुरू से ही थी और कॉलेज के दिनों में भी वह छात्र राजनीति से जुड़ गए थे । उनकी बहन कोशल्या की शादी कोटद्वार में हुई थी और उनकी बहन के देवर स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया एसएफआई में थे।

  • जो वामपंथ की ओर झुकाव रखने वाला छात्र संगठन है और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे । बहन के देवर ने अजय को एसएफआई के बैनर तले छात्र राजनीति में शामिल होने के लिए राजी करने का प्रयास किया।

  • लेकिन प्रमोद रावत उर्फ टुंडा ने अजय को दूसरी तरफ मोड़ दिया और उन्हें RSS के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में शामिल करवाया. एबीवीपी में शामिल होने के बाद अजय इस क्षेत्र में काफी सक्रिय हो गए.

वह उस समय एबीवीपी की ओर से आयोजित हर कार्यक्रम प्रचार और प्रदर्शन में आगे रहते थे। अलग उत्तराखंड की मांग को लेकर आयोजित एक प्रदर्शन के दौरान अजय को पुलिस की ओर से किए गए लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा और उन्होंने एक वरिष्ठ कार्यकर्ता राकेश चमोली को बचाया। कोटद्वार की भूमि अजय के सामाजिक राजनीतिक आंदोलन का शैक्षणिक आधार बन गई।

  • कॉलेज के आखिरी वर्षों के दौरान कोटद्वार में एबीवीपी का एक बड़ा वर्कशॉप आयोजित किया गया जहां बाहर से आए एक कार्यकर्ता को हैजा हो गया और दुर्भाग्य से उसकी मौत हो गई। जब शव को उठाने और उसे तारकेश्वर पहुंचाने के लिए कोई आगे नहीं आया तो अजय ने एक और स्वयंसेवी की मदद से व्यक्तिगत प्रयास किया और यह सुनिश्चित किया कि शव को उसके परिवार को सौंपा जाए।

  • इस प्रक्रिया में अजय खुद भी गंभीर रूप से बीमार हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जिम्मेदारी का एहसास और जरूरतमंद की मदद करने की इच्छा अजय में कॉलेज के दिनों से ही काफी प्रबल थी और अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की उनकी तेवर इच्छा योगी के कार्य से स्पष्ट हो जाती है।

कैसे अजय को अपने जीवन के पहले चुनाव में पराजय मिली:

वर्ष 1992 में अजय अपने कॉलेज में छात्र निकाय के चुनावों में सचिव पद के लिए चुनाव लड़ना चाहते थे। एबीवीपी से सचिव पद के लिए अपनी उम्मीदवारी पर मुहर लगवा सकते थे, लेकिन एबीवीपी के एक और छात्र पदमेश बुदलकोटी ने भी उसी पद के लिए टिकट मांग लिया। आंतरिक विवाद के चलते एबीवीपी ने तीसरे व्यक्ति को दी प्रकाश भट्ट को टिकट दे दिया।

  • अजय उस समय भी बागी थे क्योंकि उन्हें एबीवीपी का टिकट नहीं मिला इसलिए वह निर्दलीय के रूप में उस चुनाव में खड़े हो गए। अजय चुनाव हार गए। अरुण तिवारी नाम के छात्र ने कोटद्वार के गवर्नमेंट पीजी कॉलेज के छात्र संघ महासचिव का पद जीत लिया। वर्तमान में अरुण समाजवादी पार्टी में एक सक्रिय सदस्य हैं और पदमेश बुदलकोटी कोटद्वार में आर एस एस के सक्रिय सदस्य हैं।

  • यह अजय बिष्ट का पहला चुनाव था। उसके बाद से वह आज तक कोई भी चुनाव नहीं हारे। योगी आदित्यनाथ के रूप में अजय लोकसभा के पाठ चुनावों में खड़े हुए और उन सभी में उन्हें जीत मिली।

  • उसी समय चुनाव प्रचार की तैयारियों के दौरान एक रात अजय किसी दोस्त के कमरे में सो गए और उसी रात किसी ने अजय के कमरे में घुसकर अन्य सामानों के साथ उनके सारे सर्टिफिकेट और दस्तावेज चुरा लिए। इस घटना ने उन्हें परेशान कर दिया और वे चुनावों पर पूरी तरह से अपना ध्यान नहीं लगा सके। जिस वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

योगी आदित्यनाथ के माता-पिता का जीवन परिचय और उनका पेशा:

योगी आदित्यनाथ यानी अजय के पिता का नाम आनंद सिंह बिष्ट है जो कि एक फॉरेस्ट रेंजर थे और उनकी माता का नाम सावित्री है। उनकी माता गृहिणी है।। योगी आदित्यनाथ के जैविक पिता श्री आनंद सिंह बिष्ट ने 38 वर्षों तक वन विभाग में अथक रुप से ईमानदारी के साथ काम किया है। अपने चार दशकों की नौकरी के दौरान उन्होंने मसूरी डिविजन, उत्तरकाशी डिविजन, टिहरी डिविजन में काम किया और 1991 में पौड़ी डिवीजन से रिटायर हुए।

  • उन्होंने अपनी नौकरी बहुत ईमानदारी से से की। जिस वजह से उनके बच्चे सच्चे और ईमानदार हैं। उनके पिता की नौकरी होने के कारण उनके तबादले कई स्थानों पर होते रहे लेकिन उनका परिवार अधिकतर समय पौड़ी गढ़वाल में रहा।

उनकी माता सावित्री देवी जी अपने बच्चों के बहुत करीब हैं। क्योंकि उनके पिता आनंद बिष्ट नौकरी की वजह से घर से अधिकतर बाहर रहते थे और बच्चों का अधिकतर समय उनकी माताजी सावित्री देवी के साथ ही बीतता था।

  • योगी आदित्यनाथ के पिता बेहद सख्त और अनुशासन प्रिय थे इसलिए घर के सभी बच्चे उनसे डरा करते थे। आनंद बिष्ट भले ही घर से बाहर रहते थे लेकिन फिर भी वह इस बात का ख्याल रखते थे कि उनके बच्चों पर उनकी नजर रहे और यह देखने के लिए अचानक घर आते थे कि बच्चे अनुशासित है या नहीं और अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहे हैं या नहीं। इसी वजह से आज पंचूर का अजय उत्तर प्रदेश का 21 वां 22 वां मुख्यमंत्री बन पाया है।

योगी आदित्यनाथ के कितने भाई -बहन है और वे क्या काम करते है:

योगी आदित्यनाथ सात भाई बहन है। उनकी तीन बहने और तीन भाई हैं। उनकी तीनों बहनों में सबसे बड़ी पुष्पा बिष्ट ,कौशल्या बिष्ट और शशि बिष्ट है जिन के बाद उनके तीन भाई हैं मनिंदर सिंह बिष्ट, शैलेंद्र सिंह बिष्ट और महेंद्र सिंह बिष्ट। अजय विष्ट अपने भाई – बहनों में पाँचवे नंबर पर है।

उनकी सबसे बड़ी बेटी पुष्पा बिष्ट की शादी पास ही यमकेश्वर के गांव बडोली में हुई है। वह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहती है। कौशल्या बिष उत्तराखंड के कोटद्वार में रहती है और शशि उत्तराखंड के नीलकंठ में रहती है।

मनेंद्र पंचूर गांव में योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में स्थापित और सीधे गोरखनाथ मठ की ओर से चलाए जा रहे गुरु गोरखनाथ कॉलेज में कंप्यूटर ऑपरेटर और शिक्षक के रूप में कार्य करते हैं

शैलेंद्र भारतीय सेना के गढ़वाल राइफल्स में सूबेदार हैं और देश की सेवा कर रहे हैं। उनके सबसे छोटे बेटे महेंद्र पत्रकार है और अमर उजाला अखबार के लिए काम करने के साथ ही स्कूल में पढ़ाते हैं। यह भी पड़ें : शिवा चौहान कौन है? शिव चौहान का जीवन परिचय.

सन्यासी बनने के बाद योगी आदित्यनाथ से पिता आनंद सिंह बिष्ट और माता सावित्री की पहली मुलाकात:

कोटद्वार से अपना ग्रेजुएशन करने के बाद अजय ने 1992 में पंडित ललित मोहन शर्मा गवर्नमेंट पीजी कॉलेज ऋषिकेश में मास्टर ऑफ साइंस के लिए दाखिला लिया। जब वह एमएससी के पहले वर्ष में थे तब गोरखपुर जाना शुरु किया और महंत अवैद्यनाथ से मिले।

  • कुछ ही मुलाकातों के बाद अजय गोरखनाथ मठ जाकर महंत अवैद्यनाथ के पूर्णकालिक शिष्य के रूप में रहने का मन बना चुके थे। नवंबर 1993 में अजय ने अपना गांव, अपने माता-पिता दोस्तों के साथ ही अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी और परिवार को कुछ बताए बिना ही गोरखपुर चले गए।

  • 15 फरवरी 1994 को अजय का अभिषेक उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ के नाथ पंथ योगी के रूप में कर दिया।

अजय के माता-पिता को 2 महीने के बाद अखबार से उनके संन्यास लेने की जानकारी मिली। उस समय तक उनके माता-पिता यही सोच रहे थे कि वह किसी रोजगार की तलाश में गोरखपुर गए हैं। इसकी जानकारी मिलने के बाद अजय के माता-पिता अगली ही ट्रेन से गोरखपुर पहुंचे और मठ में अजय को सन्यासी की वेशभूषा में देख कर आनंद सिंह बिष्ट हैरान रह गए।

  • उस समय महंत अवैद्यनाथ शहर से बाहर गए हुए थे और अजय को ही अपने माता-पिता को शांत करना पड़ा तथा उन्होंने अपने गुरु से फोन पर उनकी बात करवाई।

  • महंत अवैद्यनाथ ने अजय के पिता को बताया कि उनका बेटा अजय अब योगी आदित्यनाथ बन चुका है। महंत अवैद्यनाथ ने आनंद सिंह बिष्ट से यह भी आग्रह किया कि उनके
  • चार बेटों में से एक ने राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू धर्म को मजबूत बनाने के लिए उनके साथ आने का फैसला किया है।

उन्होंने कहा कि आप इसे देश की सेवा करने की इजाजत दें। शुरुआती विरोध के बाद उनके माता पिता मान गए। 2 महीने के बाद योगी आदित्यनाथ सन्यासी परंपरा के रूप में अपनी मां से भिक्षा मांगने के लिए उत्तराखंड स्थित अपने गांव पंचूर आए।

उसके बाद से अजय के माता पिता गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ से मिलने एक दो बार आ चुके हैं। वे अब उन्हें दूसरों की तरह ही महाराजा जी कहते हैं जो उस भूमिका और वहां के नियमों के प्रति सम्मान है।

  • परिवार के कुछ एक महत्वपूर्ण अवसरों पर योगी आदित्यनाथ जी उत्तराखंड में अपने गृहनगर आए हैं योगी आदित्यनाथ ने उत्तराखंड में अपने गांव के करीब गोरखपुर मठ प्रशासन के अंतर्गत महायोगी गुरु गोरखनाथ कॉलेज स्थापित किया है।

  • उत्तराखंड की पहाड़ियों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी को दिया है और अब इस घर ने इन्हीं पहाड़ियों से चौथा व्यक्ति उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में दिया है। अजय के पिता आनंद जी और उनकी माता सावित्री जी कहती है कि अजय के माता पिता के रूप में हमारा जीवन धन्य हो गया और आज हमें उस सन्यासी पर गर्व है जो इतने बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बन गया है।

अजय बिष्ट कैसे बना योगी आदित्यनाथ:

अजय बिष्ट जो ऋषिकेश में गणित से मास्टर ऑफ साइंस की पढ़ाई कर रहा था, वह श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रति व्यक्तिगत झुकव के कारण अपनी औपचारिक शिक्षा से भटक गया। 1993 के आरंभ में जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था तब वह गोरखधाम मंदिर के दर्शन करने गया और उसे महंत अवैद्यनाथ से मिलने का भी अवसर मिला।

  • महंत अवैद्यनाथ ने धैर्य से अजय की कहानी सुनी और उससे कहा कि वह एक जन्मजात योगी है और एक दिन उसका वहां आना निश्चित है। महंत अवैद्यनाथ के साथ अजय की यह पहली बातचीत नहीं थी वह कुछ समय के लिए 1990 में उनसे मिले थे, जब महंत राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के लिए भारत भ्रमण पर निकले थे।

  • मई 1993 में अजय एक बार फिर महंत अवैद्यनाथ से मिले और योग के बारे में और ज्यादा जाने के उद्देश्य से हफ्ते के लिए गोरखपुर गए। अजय जब लौट रहे थे, तब महंत अवैद्यनाथ ने उनसे कहा कि वह पूर्णकालिक शिक्षक के रूप में गोरखधाम मंदिर के साथ शामिल हो जाएं। मन में कई तरह के विचार लेकर अजय लौटे, लेकिन वह महंत अवैद्यनाथ से काफी प्रभावित हुए।

2 महीने के बाद, जब किसी इलाज के लिए महंत अवैद्यनाथ नई दिल्ली के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स में भर्ती हुए तब अजय उनसे मिलने पहुंचे। महंत अवैद्यनाथ ने पूरी इच्छा के साथ अजय से कहा कि वह गोरखधाम मठ में शामिल होने के लिए उनके पुराने आग्रह पर विचार करें

  • महंत अवैद्यनाथ ने यह भी कहा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती जिसकी वजह से उन्होंने एक योग्य शिष्य को अपना उत्तराधिकारी घोषित करना है नहीं तो हिंदू समुदाय उन्हें आरोपित करेगा।

  • इसीलिए उन्होंने अजय से यह कहते हुए थोड़ा और दबाव बनाया कि वह उनमें एक स्वाभाविक योगी को देखते हैं और उनसे आग्रह किया कि वह शिष्य के रूप में मंदिर जाएं।

  • अजय ने उन्हें आश्वस्त किया कि जब महंत अवैद्यनाथ फिर से स्वस्थ हो जाएंगे और गोरखपुर लौटने के लायक होंगे तब वह उनसे वही मिलेंगे।

वर्ष 1993 में अजय ने अपने परिवार को ज्यादा कुछ बताए बिना ही अपना गांव, अपने माता-पिता दोस्तों और अपनी पढ़ाई को छोड़ दिया और गोरखपुर चले गए।

  • 15 फरवरी 1994 को बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर गुरु महंत अवैद्यनाथ ने अजय नाथ पंथ योगी के रूप में अभिषेक किया।
  • प्रारब्ध के अनुसार अजय योगी आदित्यनाथ बन गए नाथ पंथ के सबसे प्राचीन मठ गोरखनाथ मठ के महंत के रूप में अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी बन गए।
  • बताया जाता है कि इस परंपरा की शुरुआत आदिनाथ भगवान शिव से हुई। 12 सितंबर 2014 को महंत अवैद्यनाथ की मृत्यु के बाद एक पारंपरिक औपचारिक समारोह के बाद योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर मुख्य पुजारी बन गए।

मठ की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते योगी आदित्यनाथ, सांसद के रूप में:

15 फरवरी 1994 को बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर गुरु महंत अवैद्यनाथ ने अजय का नाथपंथी योगी के रूप में अभिषेक किया। प्रारब्ध के अनुसार अजय योगी आदित्यनाथ बन गए, नाथ पंथ के सबसे प्राचीन मठ गोरखनाथ मठ के महंत के रूप में अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी बन गए। अवैद्यनाथ के आशीर्वाद से और गोरखपुर में अपनी लोकप्रियता के दम पर योगी आदित्यनाथ ने 1998 का लोकसभा का चुनाव लड़ा तथा पहली बार 26000 से भी अधिक मतों से जीत दर्ज की।

  • 1998 में आदित्यनाथ महज 26 साल की उम्र में 12 वीं लोकसभा के सबसे युवा सांसद बने।उसके बाद से ही योगी आदित्यनाथ कभी चुनाव नहीं हारे। गोरखपुर लोकसभा सीट पर दूसरे नंबर पर रहने वाले उम्मीदवार बदलते रहे , लेकिन योगी का वोट प्रतिशत और जीत का अंतर बढ़ता चला गया, सिवाय1999 में जब समाजवादी पार्टी के जमुना प्रसाद निषाद के खिलाफ उनकी जीत का अंतर 7000 वोटों का था।

  • साल 2004 में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा तब भी योगी अपनी सीट 1,40,000 के अंतर से जीतने में कामयाब रहे और यह जीत एसपी के उन्हीं जमुना प्रसाद निषाद के खिलाफ मिली। सन 2009 में योगी के लिए जीत का अंतर 2,20,000 मतों का हो गया था, तब दूसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के विनय शंकर तिवारी थे। विनय शंकर तिवारी पूर्वी क्षेत्र के मशहूर बाहुबली हरिशंकर तिवारी के पुत्र हैं।

लोकप्रिय भोजपुरी गायक मनोज तिवारी ने भी पहली बार राजनीति में अपना हाथ योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जमाया, जब वे गोरखपुर लोकसभा सीट से एसपी के टिकट पर 2009 में चुनाव लड़े और 83,000 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे।मनोज तिवारी बाद में बीजेपी में शामिल हो गए और अभी दिल्ली के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष हैं। योगी ने 2004 और 2009 में अपनी सीट भारी मतों से जीती।

  • साल 2014 में मोदी लहर पर सवार होकर योगी ने एक बार फिर गोरखपुर सीट को 3,00,000 से भी अधिक मतों के अंतर से जीत लिया।

  • समय के साथ-साथ योगी ने गोरखपुर में लोगों के बीच बेहद मजबूत व्यक्तिगत और राजनीतिक पकड़ बना ली है तथा हर बीतते दिन के साथ ब्रांड योगी एक धर्म बनता जा रहा है। देखते ही देखते गोरखपुर का कोना कोना यही नारा लगाने लगा है गोरखपुर में रहना है तो योगी योगी कहना है।

मठ में योगी आदित्यनाथ का जनता दरबार:

पिछले दो दशकों में उन्होंने जनता दरबार लगाने की अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ की परंपरा को समृद्ध बनाया है। वह मठ में हर दिन लोगों की समस्याओं को सुनने के लिए अपना बहुमूल्य समय लगाते थे। ना केवल गोरखपुर बल्कि उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में विशेष रूप से पूर्वी यूपी के लोग योगी के दरबार में आते हैं जब हर तरफ से ना उम्मीद हो चुके होते हैं।

  • लोग तरह-तरह की गुजारिश लेकर दरबार में आते हैं । जिनमें रेलवे की टिकट कंफर्म कराने से लेकर, पेंशन और छात्रवृत्ति तक और अच्छे सरकारी अस्पताल में इलाज कराने से लेकर ,जब बाहुबलियों के खिलाफ पुलिस उनकी मदद नहीं करती तब गुहार लगाते हुए मठ में आते हैं।

  • मठ में योगी का जनता दरबार एक देसी शैली का दफ्तर है, जहां दिन-रात मदद मांगने वालों के फोन बजते रहते हैं, टाइप राइटर में खड़खड़ आहट होती रहती है, जिन पर आवेदकों की मदद के लिए कवर लेटर टाइप किए जाते हैं। यह मदद आवेदक के वर्ग, जाति या धर्म को देखे बिना की जाती है।

सबसे पहले मठ में योगी का दफ्तर समस्या पर गौर करता है और बाजी आग्रह पर सिफारिश की एक चिट्ठी देता। योगी स्वयं कई आवेदकों से बात करते हैं और उनकी समस्या सुनते हैं। यदि आवेदक इस गुहार के साथ लौटता है कि कोई अधिकारी चिट्ठी पर काम नहीं कर रहा है, तो उस अधिकारी को तुरंत मठ की तरफ से फोन जाता है और कई बार योगी खुद बात करते हैं। अगर फोन से भी बात नहीं बनती, तो योगी संबंधित दफ्तर पर पहुंच जाते हैं।

  • गोरखपुर का यह लोकप्रिय और प्यारा नेता जब किसी सरकारी दफ्तर में जाता है तो रास्ते में हजारों लोग उनके साथ जुड़ जाते हैं और फिर वह अधिकारी आवेदक की शिकायत को सुनने पर मजबूर हो जाता है। इस तरह के घेराव और प्रदर्शनों के बाद अब मठ की चिट्ठियों व फोन पर ही काम कराने के लिए प्राप्त है।

  • सन 2017 से सत्ता का ढांचा बदल गया है। योगी आदित्यनाथ अब राज्य के मुख्यमंत्री हैं। योगी आज भी लखनऊ में 5 कालिदास मार्ग पर जनता दरबार लगाते हैं। अब बस अंतर इतना आया है कि चिट्ठी सीएम दफ्तर से जाती है और उसके बाद फोन करने या समाधान के लिए प्रदर्शन की जरूरत नहीं पड़ती है। योगी जब लखनऊ में रहते हैं तब भी मठ में जनता दरबार लगता है।

योगी के करीबी द्वारका प्रसाद तिवारी इसका जिम्मा संभालते हैं और मठ में आने वाली शिकायतों की निगरानी तथा उनके तेजी से निपटारा को सुनिश्चित करते हैं। ऐसा लगता है कि जल्दी ही गोरखपुर में उसी तरह का एक मुख्यमंत्री कार्यालय बन जाएगा जैसे कि वाराणसी में प्रधानमंत्री का कार्यालय है।

  • योगी के जनता दरबार से प्रेरित होकर बीजेपी ने राज्य के पार्टी कार्यालय में वैसा ही इंतजाम किया है। जहां मंत्री बारी-बारी से आकर आम लोगों की समस्या सुनते हैं।

बीजेपी ने सीएम पद के लिए योगी को क्यों चुना:

2017 में यूपी के जबरदस्त चुनावी संग्राम और बहुमत से जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी के लिए अपनी झोली में आए इस नए राज्य के लिए एक योग्य और दूरदर्शी नेता चाहिए था। मीडिया हर घंटे एक नया नाम सामने रख रहा था; राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, उमा भारती, मनोज सिन्हा, स्वतंत्र देव सिंह, दिनेश शर्मा, केशव प्रसाद मौर्य ,वरुण गांधी, सतीश महाना, सुरेश खन्ना और ऐसे ही ना जाने कई नाम सामने आ रहे थे । आखिरकार योगी आदित्यनाथ के नाम पर मोहर लगी।

  • संसद के रूप में उनकी अनेक रिकॉर्ड, संसद में उन्होंने जो प्रश्न पूछे, जिन चर्चाओं में शामिल हुए उन्हें खंगालते हुए पता चलता है कि योगी आदित्यनाथ एक बहुत ही मेहनती वह युवा राजनेता के साथ एक बहुत बड़े समाज सेवक भी हैं।

  • लोकसभा के साथ ही अपने संसदीय क्षेत्र में पिछले 2 दशकों से हुए कड़ी मेहनत करने वाले सांसद रहे हैं।

  • लोगों की समस्या को सुलझाने के लिए योगी आदित्यनाथ मठ में जनता दरबार के रूप में समस्या निवारण की व्यवस्था है। किसी भी समस्या को लेकर वे संबंधित अधिकारी को फोन करते और उस अधिकारी को चिट्ठी भेजते हैं।

  • अगर इससे काम नहीं बना तो वह हिंसक विरोध से शक्ति प्रदर्शन करते हैं जिससे बड़ी संख्या में स्वयंसेवक अधिकारी के कार्यालय आया उसके सरकारी आवास के सामने भी दो विरोध दर्ज कराते हैं.

  • धीरे-धीरे अधिकारियों को समझ आ गया कि इससे पहले कि योगी के लोगों और समर्थकों का हुजूम उनके दफ्तर पर धावा बोल दे फोन और चिट्ठी पर कार्यवाही करना ही बेहतर है.

योगी युवाओं और बीजेपी के मतदाताओं के बीच बेहद लोकप्रिय हैं, जो अनेकानेक फैन फैन पेज और अभियानों से साबित होता है, जिन्हें उनके लिए तमाम डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चलाया जा रहा है। इसके साथ ही योगी पांच बार सांसद रह चुके हैं, जिन्होंने संसदीय बहस में प्रश्नों को पूछने और प्राइवेट मेंबर बिल के जरिए कमाल का प्रदर्शन दिखाया.

  • उन्होंने आधुनिक के साथ-साथ वैदिक शिक्षा प्राप्त कर गोरखनाथ मठ जैसे बड़े संस्थानों को चलाने का अनुभव प्राप्त किया और इस प्रकार उन्हें यूपी के मुख्यमंत्री बनाया जाना पूरी तरह से बीजेपी के इस प्रदर्शन के अनुकूल है जिसमें ताकतवर और लोकप्रिय स्थानीय नेताओं को सर्वोच्च पद दिया जाता है.

  • मोदी और शाह एक लोक के दशक ताकतवर नेता की तलाश कर रहे थे और योगी आदित्यनाथ में उन्हें दोनों ही बातें मिल गई. अमित शाह पहले ही जमीन पर योगी आदित्यनाथ की मजबूत पकड़ से प्रभावित थे. 2013 में अमित शाह को 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले जमीन तैयार करने के लिए उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना कर भेजा गया था.

  • पहलुओं और आबादी की विशेषताओं को समझने के लिए अमित शाह ने राज्य में तमाम इलाकों की यात्रा की और गोरखपुर में सफर के दौरान उन्हें स्थानीय लोगों के हिंसक विरोध का सामना करना पड़ा.

उसमें उनके साथ कोई सुरक्षा नहीं थी. उन्होंने योगी आदित्यनाथ से फोन पर बात की और कुछ ही मिनटों में हिंदू युवा वाहिनी के कई युवा कार्यकर्ता बाइक पर सवार होकर पहुंच गए और उन्होंने अमित शाह के लिए रास्ता खुलवाया।

  • योगी ने अभी अपनी एक हाल ही में इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने अपना पासपोर्ट पीएमओ को दिया था, ताकि उच्च स्तरीय संसदीय समिति से विदेश दौरे के लिए अनुमति मिल सके।
  • पीएमओ ने उन्हें सलाह दी कि यूपी के आने वाले नतीजों को देखते हुए हुए देश से बाहर ना जाए।
  • पीएमओ के फैसले से खुश नहीं थे, लेकिन उस वक्त उन्हें मालूम नहीं था कि कोई बड़ी चीज उनका इंतजार कर रही थी।

योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में:

19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

CM बनने के बाद योगी आदित्यनाथ का पहला भाषण:

पिछले अनेक वर्षों के दौरान मीडिया का ध्यान योगी के आक्रामक चुनावी भाषणों तक ही समित था, लेकिन 19 March, 2017 को पत्रकार अपने भगवाधारी मुख्यमंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस का तथा राज्य में उनकी सरकार की प्राथमिकता को सुनने को आतुर थे।

  • सुखद और स्थिर हावभाव के साथ मीडिया कर्मियों को संबोधित करते हुए योगी ने कहा, “अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में मैं यह सभी मित्रों का अपने सहयोगियों केशव प्रसाद मौर्य जी तथा दिनेश शर्मा जी के साथ स्वागत करता हूं। उत्तर प्रदेश के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है।

  • भारतीय जनता पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व बहुमत मिला है। नई सरकार का औपचारिक शपथ ग्रहण समारोह अभी-अभी पूरा हुआ है। हम उत्तर प्रदेश के लोगों का आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने विकास और सुशासन के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी को इतने भारी बहुमत से जिताया है।

  • इस मुद्दे पर आप सब के माध्यम से हम प्रदेश की जनता को पूरी तरह आश्वस्त करना चाहते हैं कि राज्य सरकार उत्तर प्रदेश को विकास और खुशहाली के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ाने के लिए जो भी प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता पड़ेगी, उस में कहीं भी कोर कसर नहीं छोड़ेगी।

  • अपने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमारी सरकार 2017 के भारतीय जनता पार्टी के लोक कल्याण संकल्प पत्र में किए गए सभी वायदों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से कृत संकल्पित है।

अवैध बूचड़खाना पर कार्रवाई:

  • BJP के 2017 के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल अवैध बूचड़खाना पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई। पद संभालने के पहले ही महीने में सीएम योगी आदित्यनाथ ने अवैध कत्लखाना मीट की दुकान और गाय की तस्करी पर कार्यवाही के आदेश दिए थे।
  • सरकार ने सफाई दी है कि केवल अवैध कत्लखाना निशाना बनाया गया। गायों और बछड़ों की रक्षा करना संविधान की धारा 48 के तहत राज्य के नीति निर्धारक सिद्धांतों में से एक है।
  • 1955 के बाद से ही उत्तर प्रदेश में गौ हत्या। राज्य में भविष्य की कत्ल के नियमों को लेकर उत्तर प्रदेश गौ हत्या निषेध अधिनियम 1955 लागू है। इस अधिनियम के अनुसार गायों की हत्या प्रतिबंधित है। राज्य के बाहर गोकशी के लिए गायों को ले जाने की इजाजत भी नहीं है।

एंटी रोमियो स्कवैड:

  • महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बीजेपी सरकार ने राज्य में एंटी रोमियो स्कवैडस का गठन करने का आदेश दिया है। स्कवैड स्कूल और कॉलेजों के आस-पास रहते हैं। जहां महिलाओं की संख्या सबसे अधिक रहती है। उनका काम भीड़ में मौजूद छेड़छाड़ करने वाले शरारती तत्वों की पहचान करना है। स्कवैड की वर्दी में रहेंगे या कुछ मामलों में सादी वर्दी में।

  • टीम में सिपाही हवलदार, ASI और SI रहेंगे। एंटी रोमियो स्कवैड शरारत करने वालों को चेतावनी के साथ छोड़ सकते हैं, उनके माता-पिता को सूचित कर सकते हैं, यहां तक कि मामले की गंभीरता को देखते हुए प्राधिकार यही भी शुरू कर सकते हैं।

राज्य में कानून व्यवस्था में सख्ती:

  • योगी सरकार ने राज्य की कानून व्यवस्था के ढांचे को चुस्त-दुरुस्त बनाने पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है। जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों से कहा गया है कि वे 9:00 से 11:00 बजे तक हर दिन लोगों से मिले तथा कैंप ऑफिस की संस्कृति को छोड़ दें।

  • एक इंटरव्यू में योगी ने कहा था कि अगर कोई सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा नहीं कर पाती है तो यह उसके लिए सबसे शर्म की बात है। योगी ने जोर देकर कहा कि अपराधियों को अब राजनीतिक संरक्षण के बजाय पुलिस की गोलियों का सामना करना पड़ रहा है।

किसानों की कर्ज माफी:

उत्तर प्रदेश के छठे चरण की 4 सीटों के लिए प्रचार करते हुए नरेंद्र मोदी ने 1 मार्च को उत्तर प्रदेश के देवरिया में एक रैली को संबोधित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेधड़क होकर ऐलान किया कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो नतीजे आने के बाद कैबिनेट की पहली ही बैठक में किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा।

  • उत्तर प्रदेश सरकार ने 4 अप्रैल को कैबिनेट की पहली ही बैठक में कुल 36359 करोड़ के किसानों के कर्ज को माफ करने का फैसला किया। इस निर्णय से राज्य के कम से कम 2.5 करोड़ छोटे और मझौली किसानों को लाभ मिला।

गड्ढा मुक्त सड़कें:

गड्ढा मुक्त सड़के किसानों के लिए वरदान है, जो समय पर अपना उत्पाद मंडियों तक ले जा सकते हैं। यह कॉलेज जाने वाले छात्रों, अस्पताल जाने वाले मरीजो के लिए, समय पर दफ्तर पहुंचकर अपना काम कराने वालों के लिए वरदान है, जिसे सीएम योगी आदित्यनाथ से बेहतर और कोई नहीं समझता, जिसने पिछले दो दशकों से सड़कों पर लोगों की समस्याओं को सुना और और उनका निदान किया है। गड्ढा मुक्त सड़कों की चुनौती सबसे कठिन चुनौतियों में से एक थी, जिसे योगी ने अपने लोक निर्माण मंत्री और डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य को दिया था।

  • 25 मार्च को आदित्यनाथ ने 15 जून 2017 dedline निर्धारित की , जिसमें यूपी की सभी सड़कों को गड्ढा मुक्त किया जाना था। वास्तव में आज तक पंचायत पर राहुल कमल से बात करती हो योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अपनी टीम को सड़कों पर भेजें गड्ढों की फिल्में बनाएं और उन्हें अनेक कार्यालय को भेजे ताकि कोई भी गड्ढा बाकी ना रहे।

गन्ना किसानों का भुगतान:

ऐसे ही तेजी पीएम मोदी की ओर से गन्ना किसानों को लेकर किए गए चुनावी वादे के मामले में दिखाई गई। मिलो को बकाया चुकाने के लिए निर्धारित समय सीमा दी जा रही थी और उसके बाद जो कुछ हुआ वह इतिहास था।

  • कुछ ही हफ्तों के भीतर मिल मालिकों ने 5000 करोड़ से भी ज्यादा का भुगतान किया। गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा ने गर्व के साथ ट्वीट किया 56 चीनी मिलों द्वारा गन्ना किसानों का 5080 करोड़ का बकाया चुकाए जा रहा है और चीनी मिल मालिकों ने इस समय सीमा का पालन नहीं किया उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा।

सभी के लिए बिजली:

पदभार ग्रहण करने के एक महीने के भीतर आदित्यनाथ सरकार ने केंद्र के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए , जिसमें जिला मुख्यालय को 24 घंटे बिजली सप्लाई , तहसील स्तर पर 20 घंटे सप्लाई और बुंदेलखंड क्षेत्र और ग्रामीण इलाकों में 18 घंटे बिजली सप्लाई को सुनिश्चित किया गया।

  • सरकार ने घोषित किया कि नवंबर 2028 तक राज्य के सभी गांव और घर में 24 घंटे बिजली की सप्लाई की जाएगी। इससे उत्तर प्रदेश के लोगों को विशेष तौर पर गर्मी में बड़ी राहत मिलेगी।

भ्रष्टाचार के मामलों की जांच:

विभागीय प्रस्तुतियों के दौरान योगी और उनकी टीम ने पिछली सरकारों की कुछ परियोजना में कई तरह की गड़बड़ियां पाई और सीएम में उनमें से कुछ की जांच के आदेश दिए।

  • गन्ना विकास और चीनी उद्योग विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान टीम ने इस मामले को संज्ञान में लिया की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने 21 चीनी मिलों को कौड़ियों के भाव बेच दिया था।
  • इस पर योगी गुस्से में आ गई उन्होंने कहा कि सरकारी संपत्ति को मिट्टी के मोल बेचने की ज्यादा किसी को भी नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि वह संपत्ति जनता की है।

योगी और विवाद:

1999 का पंचरुखीय केस :

लोगों के प्रति योगी के प्रेम और उनकी समस्याओं को सुलझाने की उनकी हार्दिक इच्छा ने कई बार उन्हें मुश्किल में डाला है। पचरुखिया नाम के गांव में कब्रिस्तान की जमीन पर विस्तार करने के लिए मुस्लिम समुदाय ने पुराने पवित्र पीपल के पेड़ को हटा दिया था, क्योंकि पुलिस ने उसके खिलाफ कार्यवाही नहीं की इसलिए योगी ने हस्तक्षेप किया और पीपल का नया पेड़ लगाने के लिए उस गांव में पहुंच गए।

  • योगी जब गांव में पहुंचते हैं समाजवादी पार्टी के नेता तलत अजीज ने गांव के करीब एक सभा बुला ली ताकि माहौल को सांप्रदायिक बनाया जा सके। यह वही दलबदलू तलत अजीज है जिसने 2017 के विधानसभा चुनाव में महाराजगंज के पनियारा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और हार गया।

  • गांव से लौटते समय जब योगी का कारवां उस गांवों से शांतिपूर्ण ढंग से गुजर रहा था तब योगी के काफिले की आखिरी गाड़ी पर अजीज के भारी पथराव किया।

  • योगी जी आगे की एक गाड़ी में बैठे थे उन्हें फोन पर इसकी सूचना मिली उन्होंने वापस लौटने का फैसला किया। उनके सहयोगियों ने उनसे कहा कि आप लौट कर ना जाएंगे लेकिन योगी ने कहा कि जब हमारे लोग मुसीबत में है तब हम पीठ नहीं दिखा सकते।

योगी जब तलत अजीज की सभा के स्थल पर पहुंचे तब योगी की गाड़ी पर पथराव और फायरिंग शुरू हो गई। जवाबी फायरिंग में सत्य प्रकाश यादव नामक एक पुलिसकर्मी की गोली लगने से मौत हो गई। उसे तलत अजीज की सुरक्षा में तैनात किया गया था।। इस घटना की पर्याप्त जानकारी के बिना उस क्षेत्र के पुलिस उपमहानिरीक्षक आरपी सिंह ने योगी आदित्यनाथ की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया।

  • इलाके की पुलिस को उनके मुख्यालय से खुफिया जानकारी मिली कि अपराधी लाल रंग की टाटा सुमो में था। गोरखनाथ मंदिर तक के सभी 3 मौके पर पुलिस ने देखा कि लाल सुमन में उनके स्थानीय सांसद योगी आदित्यनाथ सवार थे ना कि कोई अपराधी, इसलिए उन्होंने योगी के कारवां को जाने दिया और योगी मंदिर पहुंच गए।

  • सार्क 1999 में लखनऊ में कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सत्ता में बैठी थी। बीजेपी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र के दबंग नेता हरिशंकर तिवारी और शिव प्रताप शुक्ला लखनऊ में मंत्री बन कर बैठे थे।

  • उन दिनों गोरखपुर में योगी के आने के साथ ही हरिशंकर तिवारी और शिव प्रताप शुक्ला जैसे नेताओं के दिन लगने लगे। दूसरी तरफ योगी ब्रांड की राजनीति महत्वपूर्ण हो चली थी।

योगी के समर्थक आज भी मानते हैं कि पचरुखिया के समय तिवारी और शुक्ला ने भरसक प्रयास किया कि योगी को गिरफ्तार कर लिया जाए। बाद में महंत अवैद्यनाथ ने इसमें दखल दिया और यह मामला तत्कालीन गृह मंत्री एलके आडवाणी और तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बीच बचाव से सुलझा लिया गया।

2002, हिंदू युवा वाहिनी का गठन:

लव जिहाद:

2005 व्यापक पुनरधर्मांतरण (घर वापसी):

2007, योगी आदित्यनाथ की गिरफ्तारी:

2008, योगी आदित्यनाथ पर घातक हमला:

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